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अभी तो आये हो अभी क्यों जाना है

अभी तो आये हो अभी क्यों जाना है बैठ यमुना किनारे समय साथ बिताना है क्या घर जाने का ये कोई नया बहाना है जाने का नही प्रियतम आने का बहाना है कहकर हम आये है मंदिर हमे जाना है अभी तो आये हो अभी क्यों जाना है कुछ देर तो ठहरों तुम ,हमे कुछ तुम्हे बताना है कुछ तुम्हे बताना है , कुछ तुम्हे सुनाना  है अम्बर में जब तक है सूरज , चंदा , तारे नित मिलकर हमको ये प्रेम निभाना है अभी तो आये हो अभी क्यों जाना है मुरली की धुनों पर भी नाचना और गाना है कुछ देर तो ठहरो तुम जल्दी क्यों जाना है जाना ही होगा प्रियतम हमे माँ ने बुलाया है जाना ही अगर है ,कल मिलने का वादा कर जाना है     Poet - MAHESH KUMAR MEENA

"महाराणा  प्रताप"

हाथों में आई लेखनी ,हृदय में धधक उठी ज्वाला मानो चेतक पर हो सवार राणा ने हाथ लिया भाला जो युद्ध हो चुका अब निश्चित उसको कैसे जाये टाला अब याद रहे ये बात सदा राणा की जान बचाने को बलिदान हो गया था "झाला " उसने मेवाड़ को मुक्त करवाने का प्रभार राणा पर डाला मेवाड़ी आन बचाने को राणा के हर सैनिक ने हल्दीघाटी में बलिदान स्वयं का कर डाला " जब तक आजाद हो न मेवाड़  मैं लोट न महलों को जाऊँगा धरती को बिछौना बनाऊँगा ,पत्तल-दोनो में खाऊँगा " तब राणा ने भीषण प्रण ये था कर डाला न था धन , न सैन्य पास फिर भी वो करता रहा प्रयास तब ही राणा की सहायता को भामाशाह ने धन दे डाला कहा मातृभोम के लिए जो कुछ कर सकता था वो कर डाला तब राणा ने बल पाया ऐसा असंभव को संभव कर डाला मुगलों को दूर भगा 'मरुभूमि ' को उस भूमिपुत्र ने गौरवान्वित कर डाला उस भूमिपुत्र ने अब भारत को इतिहास नया था दे डाला हाथों में आई लेखनी हृदय में धधक उठी ज्वाला                        ...

माँ तुम बिन जीवन की कल्पना भी मैं ना कर पाया

              "माँ" माँ बचपन में पालने में , तुमने मुझे झुलाया माँ  बचपन में अपना दुग्ध , तुमने मुझे पिलाया माँ बचपन में सारी बलाओं से , तुमने मुझे बचाया माँ रात को उठ-उठकर सर्दी में ,तुमने कम्बल मुझे उड़ाया तू वरदान उस ईश्वर का , ये उसने मुझे अहसास दिलाया  माँ प्रथम गुरु तू मेरी , बोलना तुमने मुझे सिखाया जब मैं बोला प्रथम बार ,तो प्रथम माँ ही मेने बुलाया  जब-जब मुझको चोट लगी , मरहम तुमने मुझे लगाया  माँ जब मैं थक हार गया , तब जीत का नवविश्वास तुमने मुझमे जगाया  संसार के छल प्रपंचों से ,अवगत तुमने मुझे कराया माँ सुकर्म की सीख दी मुझको ,इन्सान तुमने मुझे बनाया माँ तुम बिन जीवन की कल्पना भी मैं ना कर पाया माँ जो ना होती तुम तो होती मन पे रिक्तता की छाया माँ हो संसार तुम मेरा ,सब खुशियों को तुमसे ही पाया हो तुम ही वो शक्तिपुंज , जिससे शक्ति जीवन मेरा पाया माँ प्रणाम हो स्वीकार , चरणों में तेरे ईस्वर तक ने...

माँ  तेरी गोद में खेले तूने प्यार लुटाया खूब

माँ  तेरी गोद में खेले तूने प्यार लुटाया खूब माँ  तेरी गोद में खेले तूने प्यार लुटाया खूब माँ जब चोट लगी तो प्यार से सीने से लगाया खूब माँ तूने दुनिया की ठोकरों से हमे बचाया खूब माँ तेरे आंगन के फूलों ने हमे लुभाया खूब माँ तूने हम बच्चों को नीर की जगह अमृत पिलाया खूब माँ जब आंच आई तुझपे तो , हम बन्दुक उठा के चल दिए माँ सारे ऐश्वर्य ,वैभव तुझपे लूटा के चल दिए माँ आज कर्ज़ तेरे हम चूका के चल दिए माँ उठे हुए सरो को हमने झुकने न दिया माँ भले ही आज हम अपने सर कटा के चल दिए माँ वीरता से अपनी ,दुश्मनों के सर झुका के चल दिए माँ प्यार कितना है हमें तुझसे ,ये जग को बता के चल दिए माँ बलिदान पे अपने अपनों को ही नही ,दुश्मनों को अपने रुला के चल दिए माँ लोट के आएंगे तेरी गोद में ये विश्वास दिल में दबाये चल दिए माँ अब अंतिम प्रणाम हो स्वीकार ,रक्त का अपने कण-कण बहा के चल दिए                             ...

एक हसीना से ,आज रास्ते में मुलाकात हो  गई

एक हसीना से ,आज रास्ते में मुलाकात हो  गई जो नही होना था, यारों  वही बात   हो  गई अँखियों से लड़ गई अँखियाँ हम खो बैठे थे चेना इतने में यारों बरसात हो गई ,वो इतराई ,वो मुस्कराई लगा आज तो सारी हदे पार हो गई एक हसीना से ,आज रास्ते में मुलाकात हो गई वो प्रेम की जैसे अलग छटा ,छाई मानो जैसे मुझपे घटा इस घटा से प्रेम बरसात हो गई केश थे उसके घुंघराले ,लगते थे घटा से भी काले थी  तन पर सारे योवन डाले नजरें जो उठी उसकी तो कत्लेआम कर गई एक हसीना से, आज रास् में मुलाकात हो गई थे होठ या उसके मधुशाला ,लगते थे सुमधुर मयप्याला रूप था उसका मतवाला ,दिल घायल उसने कर डाला देखा जो तिरछी आँखों से कमाल कर गई आँखों ही आँखों में सारी बात कर गई एक हसीना से ,आज रास्ते में मुलाकात हो गई                                            ...