"माँ"
माँ बचपन में पालने में , तुमने मुझे झुलाया
माँ बचपन में अपना दुग्ध , तुमने मुझे पिलाया
माँ बचपन में सारी बलाओं से , तुमने मुझे बचाया
माँ रात को उठ-उठकर सर्दी में ,तुमने कम्बल मुझे उड़ाया
तू वरदान उस ईश्वर का , ये उसने मुझे अहसास दिलाया
माँ प्रथम गुरु तू मेरी , बोलना तुमने मुझे सिखाया
जब मैं बोला प्रथम बार ,तो प्रथम माँ ही मेने बुलाया
जब-जब मुझको चोट लगी , मरहम तुमने मुझे लगाया
माँ जब मैं थक हार गया , तब जीत का नवविश्वास तुमने मुझमे जगाया
संसार के छल प्रपंचों से ,अवगत तुमने मुझे कराया
माँ सुकर्म की सीख दी मुझको ,इन्सान तुमने मुझे बनाया
माँ तुम बिन जीवन की कल्पना भी मैं ना कर पाया
माँ जो ना होती तुम तो होती मन पे रिक्तता की छाया
माँ हो संसार तुम मेरा ,सब खुशियों को तुमसे ही पाया
हो तुम ही वो शक्तिपुंज , जिससे शक्ति जीवन मेरा पाया
माँ प्रणाम हो स्वीकार , चरणों में तेरे ईस्वर तक ने शीश झुकाया
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