ठहर जा ऐ जिंदगी , क्यों उथल - पुथल मचा रही
दो पल तो ठहर जा कभी , बैठूँ कहीं सोचूँ जरा
क्या हासिल हुआ , क्या खो दिया
हैं बिखरी पड़ी यादें कई , रुक तो जरा समेट लूँ
है इनमें कुछ पल खास वो , जो मिले मुझे नसीब से
इन्हीं पलों को आँखों में फिर से जरा समेट लूँ
चलना तो हैं हमको निरंतर , रुकना नहीं थकना कहाँ
अब जो भी मिले भाग्य में , सहना यहीं जाना कहाँ
घड़ियाँ बची जो आखरी , हाथों से फिसले जा रही
ठहर जा ऐ जिंदगी , क्यों उथल - पुथल मचा रहीं
विश्वास था जिनके साथ का , वो ओझल कहीं पे हो गए
कौन लगाता पार नौका , जब स्वयं नाविक नौका डुबो गए
पसरा हुआ सन्नाटा अब , गम की कड़कती धुप हैं
हैं पाँव में छाले कई , मंजिल अभी भी दूर हैं
गुजरा हुआ ये वक्त ना लौटकर फिर आयेगा
बस जरा सी यादों में सिमटकर रह जायेगा
फिर जानबूझकर , तू क्यों इतना मुझे सता रही
ठहर जा ऐ जिंदगी , क्यों उथल - पुथल मचा रहीं
कवि - महेश "हठधर्मी"
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ठहर जा ऐ जिंदगी ( Thahar Ja E Jindgi ) | Sad Poetry in Hindi कविता जिंदगी की ऊहापोह का सुन्दर चित्रण हैं। कविता पाठन के लिए धन्यवाद
दो पल तो ठहर जा कभी , बैठूँ कहीं सोचूँ जरा
क्या हासिल हुआ , क्या खो दिया
हैं बिखरी पड़ी यादें कई , रुक तो जरा समेट लूँ
है इनमें कुछ पल खास वो , जो मिले मुझे नसीब से
इन्हीं पलों को आँखों में फिर से जरा समेट लूँ
चलना तो हैं हमको निरंतर , रुकना नहीं थकना कहाँ
अब जो भी मिले भाग्य में , सहना यहीं जाना कहाँ
घड़ियाँ बची जो आखरी , हाथों से फिसले जा रही
ठहर जा ऐ जिंदगी , क्यों उथल - पुथल मचा रहीं
विश्वास था जिनके साथ का , वो ओझल कहीं पे हो गए
कौन लगाता पार नौका , जब स्वयं नाविक नौका डुबो गए
पसरा हुआ सन्नाटा अब , गम की कड़कती धुप हैं
हैं पाँव में छाले कई , मंजिल अभी भी दूर हैं
गुजरा हुआ ये वक्त ना लौटकर फिर आयेगा
बस जरा सी यादों में सिमटकर रह जायेगा
फिर जानबूझकर , तू क्यों इतना मुझे सता रही
ठहर जा ऐ जिंदगी , क्यों उथल - पुथल मचा रहीं
कवि - महेश "हठधर्मी"
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