आज कफन ओढ़कर हम जिधर चल दिए
आखरी में सभी उधर आयेंगे
कोई आज चल दिया , कोई कल आयेगा
आखरी में काफ़िले सब उधर आयेंगे
मंजिले है कई जिंदगी की मगर
मौत के बाद तो सब उधर आयेंगे
मुश्किलें है कई राहों में खड़ी
कभी दुःख है कहीं , कभी सुख की घड़ी
जी लिये जो मिले हमको पल थे सभी
अब न पल हैं बचें जो गवां पायेंगे
आज कफ़न ओढ़कर हम जिधर चल दिये
आखरी में सभी उधर आयेंगे
कफ़न ओढ़कर हमको मालूम हुआ
न हैं रिश्ता कोई , न कोई नाता यहाँ
लाश होते ही हमको उठा ले चले
अपने ही घर से कर विदा ले चले
चलिये चलते हैं अब ना कभी आएंगे
आखरी काफ़िला हैं मेरा तो यहीं
आज मैं चल दिया कल को तुम आओगें
आज कफ़न ओढ़कर हम जिधर चल दिये
आखरी में सभी उधर आयेंगे
कवि - महेश "हठधर्मी"
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आखरी काफिला ( Aakhari Kafeela ) | Hindi poetry कविता जिंदगी की कड़वी सच्चाइयों का चित्रण हैं। इस कविता में यह कल्पना की गई की अगर मुर्दा व्यक्ति बोल पाता तो उसके भाव क्या होते। ये कविता कवि की कल्पनाशीलता का प्रतिनिधित्व करती हैं। आप पाठकों का धन्यवाद हमे प्रोत्साहित करने के लिये।
आखरी में सभी उधर आयेंगे
कोई आज चल दिया , कोई कल आयेगा
आखरी में काफ़िले सब उधर आयेंगे
मंजिले है कई जिंदगी की मगर
मौत के बाद तो सब उधर आयेंगे
मुश्किलें है कई राहों में खड़ी
कभी दुःख है कहीं , कभी सुख की घड़ी
जी लिये जो मिले हमको पल थे सभी
अब न पल हैं बचें जो गवां पायेंगे
आज कफ़न ओढ़कर हम जिधर चल दिये
आखरी में सभी उधर आयेंगे
कफ़न ओढ़कर हमको मालूम हुआ
न हैं रिश्ता कोई , न कोई नाता यहाँ
लाश होते ही हमको उठा ले चले
अपने ही घर से कर विदा ले चले
चलिये चलते हैं अब ना कभी आएंगे
आखरी काफ़िला हैं मेरा तो यहीं
आज मैं चल दिया कल को तुम आओगें
आज कफ़न ओढ़कर हम जिधर चल दिये
आखरी में सभी उधर आयेंगे
कवि - महेश "हठधर्मी"
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