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दुनियाँ की सच्चाई (Duniyan Ki Sachchaai) | Sad Poetry in Hindi

ऐ दुनिया बता तेरी सच्चाई क्या हैं
सबकुछ हैं मिथ्या , सबकुछ झूठा यहाँ हैं
लगते हैं सारे चेहरे भोले यहाँ पर
हैं नकाब किसपे कैसा किसको पता हैं

अपने तो देते यहाँ घांवों पर घाव हरदम
शुक्र हैं , लगाने को मरहम कोई तो पराया मिला हैं
हैं सच्चाई कैसी , ये कैसी व्यथा हैं
जो देता जीवन की राहों में साथ मेरा

आज कांटे बिछाते राहों में मिला हैं
जो पूछे हम उनसे कुछ तो पूछे भी कैसे
कुछ पूछने का बाकि हक, अब बचा ही कहाँ हैं
ऐ दुनिया बता तेरी सच्चाई क्या हैं

दुखों के डेरे , यहाँ  बिखरे द्वार - द्वार पर
कुछ तो बता गया वो प्रेम कहाँ हैं
सब कर रहे केवल सिध्द स्वार्थ अपने
अपनापन मध्य से गायब हुआ तो कहाँ हैं

जो करतें हैं बातें मुहं पर , मधु से भी मीठी
चल रहा जहन में उनके , क्या किसको पता हैं
हम तो लिये बैठे केवल प्रेम रंग लेकिन
चढ़ा किस चेहरे पर , क्या रंग क्या पता हैं
ऐ दुनिया बता तेरी सच्चाई क्या हैं

कवि - महेश "हठकर्मी"


दुनियाँ की सच्चाई   | Sad Poetry in Hindi  इस जहाँ  की वास्तविकता को व्यक्त करने वाली कविता हैं। इस कविता में संसार की सच्चाइयो का सचित्र वर्णन करने की कोशिश की गई हैं।कवी ने इस कविता में सांसारिक अनुभवों को व्यक्त किया हैं।  दुनियाँ की सच्चाई   | Sad Poetry in Hindi कविता के पाठन के लिए धन्यवाद। 

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