दर्द पराया हम क्या जाने
जिस तन बीती वो तन जाने
घाव हरे या गहरे कितने
जिस तन लगे वो तन पहचाने
तन के घाव तो हैं मिट जाने
मन के घाव मिटे तो जाने
देंगे साथ कह गये सभी पर
जो दे कोई साथ तो हम भी जानें
सुख में था संसार साथ पर
अब संकट में ना कोई जाने
जैसे मिटता पतंगा ज्वाला पर
आखिर एक दिन हम भी मिट जाने
न हैं कलह किसी से , न हैं बेर यहाँ
हम प्रेम के पंछी बन उड़ जानें
नहीं रहेंगे हम सदा यहाँ
जिस तन बीती वो तन जाने
घाव हरे या गहरे कितने
जिस तन लगे वो तन पहचाने
तन के घाव तो हैं मिट जाने
मन के घाव मिटे तो जाने
देंगे साथ कह गये सभी पर
जो दे कोई साथ तो हम भी जानें
सुख में था संसार साथ पर
अब संकट में ना कोई जाने
जैसे मिटता पतंगा ज्वाला पर
आखिर एक दिन हम भी मिट जाने
न हैं कलह किसी से , न हैं बेर यहाँ
हम प्रेम के पंछी बन उड़ जानें
नहीं रहेंगे हम सदा यहाँ
बस कुछ अवशेष शेष रह जाने
कवि - महेश "हठधर्मी"
दर्द - ए - जहाँ (dard-e-janha ) | Sad poetry in Hindi कविता सांसरिक दुखों की अभी व्यक्ति हैं। यह कविता काफी तक एक motivatinal poem भी हैं।
कवि - महेश "हठधर्मी"
दर्द - ए - जहाँ (dard-e-janha ) | Sad poetry in Hindi कविता सांसरिक दुखों की अभी व्यक्ति हैं। यह कविता काफी तक एक motivatinal poem भी हैं।
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