हाथों में आई लेखनी ,हृदय में धधक उठी ज्वाला मानो चेतक पर हो सवार राणा ने हाथ लिया भाला जो युद्ध हो चुका अब निश्चित उसको कैसे जाये टाला अब याद रहे ये बात सदा राणा की जान बचाने को बलिदान हो गया था "झाला " उसने मेवाड़ को मुक्त करवाने का प्रभार राणा पर डाला मेवाड़ी आन बचाने को राणा के हर सैनिक ने हल्दीघाटी में बलिदान स्वयं का कर डाला " जब तक आजाद हो न मेवाड़ मैं लोट न महलों को जाऊँगा धरती को बिछौना बनाऊँगा ,पत्तल-दोनो में खाऊँगा " तब राणा ने भीषण प्रण ये था कर डाला न था धन , न सैन्य पास फिर भी वो करता रहा प्रयास तब ही राणा की सहायता को भामाशाह ने धन दे डाला कहा मातृभोम के लिए जो कुछ कर सकता था वो कर डाला तब राणा ने बल पाया ऐसा असंभव को संभव कर डाला मुगलों को दूर भगा 'मरुभूमि ' को उस भूमिपुत्र ने गौरवान्वित कर डाला उस भूमिपुत्र ने अब भारत को इतिहास नया था दे डाला हाथों में आई लेखनी हृदय में धधक उठी ज्वाला ...
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