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प्यार की हदे

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कहने को यू तो थी बातें कई , पर तुमसे कहना पाए कभी
रहना था हमको साथ मगर , रहकर भी रह ना पाए कभी
जाने को यू तो गए मौंसम कई, मौंसम-ए-जुदाई क्यों जाता नहीं
महफिले भी गई, रुसवाई हुई, क्यों वर्षो की ऐसे जुदाई हुई

अरमान दिल के जम से गए, जुदाई के गम से सहम से गए
मौंसम गुजरते रुक से गए, लम्हा गुजरते थम से गए
तुम भी तो हममें रम से गए, हाँ लम्हा गुजरते थम से गए
उन लम्हों को कैसे भुलायेंगे हम, चाहा था तुमको ही चाहेंगे हम

जो लौटे अभी फिर ना आयेंगे हम, तुमको कभी न फिर सतायेंगे हम
मिल ना सके इस जहाँ में तो क्या, यादों में नित मिलने आयेंगे हम
चाहें टुकड़ो में दिल के बिखर जाये हम, फिर भी चाहा था तुमको ही चाहेंगे हम
दूर हुई है देहे हमारी, पर तुमसे दिल दूर कैसे ले जाये हम

चाहा था तुमको जाँ से भी ज्यादा, जां मेरी तुमको ही चाहेंगे हम
रूठी है हमसे आज किस्मत हमारी, कैसे ? ऐसे ही तुमको भुलायेंगे हम
हमको यकि है चाहत पे अपनी, अब यादों में दुनिया बसायेंगे हम
दूर हुए है हम तुमसे मगर, यादों में साथ जिए जायेंगे हम

दुनिया की रस्में निभा ना सके , पर प्रेम की रस्में निभाएंगे हम
तुम जो बनी राधिका यु अगर हो , तो बन कान्हा मथुरा को जायेंगे हम
होंगे ना अब सामने हम तुम्हारे , पर साँसों में अहसास हमारा ही पाओगे तुम
जैसे खुशबू पुष्पों में रहती अंतिम क्षणों तक, वैसे ही खुद में हमको पाओगी तुम

मिल ना सके इस जहाँ में तो क्या, यादों में नित मिलने आएंगे हम
ये जहाँ, वो जहाँ क्या, हर जहाँ में साथ आएंगे-जायेंगे हम

                                                                      कवि - महेश कुमार मीना

                                                      

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